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Nov 2020 Vol 01 | Issue 03

मिलीए जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले कहानीकारों से

प्रियंका यादव, स्वाति रॉय, परोबिता बासु, अनुष्का, डॉ. निर्मला और डॉ. प्रशांत त्रिपाठी

एक यात्रा जो बताती है किस प्रकार विकास के क्षेत्र में कार्यरत कार्यकर्ताओं को जब कैमरा और फोटोग्राफी के बुनियादी ज्ञान से सशस्त्र किया जाता है तो वो जीवित रहने, बढ़ने और परिवर्तन की हैरत में डालने वाली कहानियां लेकर आ सकते हैं|

एक ऐसे समय में जब विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाले कार्यकर्ता समुदाय के साथ जुड़ने के लिए ऑनलाइन तरीकों का उपयोग कर रहे थे, उसी समय फोटोग्राफी सीखने की ऑनलाइन कार्यशाला उनके क्षमतावर्धन के लिए एक अवसर के रूप में सामने आई| एकजुट में कार्यरत विविध भौगोलिक, पेशेवर और सामाजिक पृष्ठभूमि के इन तीस कार्यकर्ताओं ने प्रोफ. जे. बी. मिस्त्री, इन्द्रजीत काम्बले, एच. सतीश, श्रद्धा घाटके और निर्माण चौधरी जैसे फोटोग्राफी के विशेषज्ञों से साप्ताहिक प्रशिक्षण प्राप्त किया जो कि फोटोग्राफी प्रमोशन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधारक ओल्वे के द्वारा आयोजित किया गया था | इस पहल की शुरुआत राजस्थान से ओडिशा तक के दूर दराज के क्षेत्रों में रहने वाले पिछड़े वर्ग की आबादी और झारखण्ड में रहने वाले विशेष रूप से पिछड़े आदिवासी समूह व शहरों की गलियों में रहने वाले बेघर लोगों की आशा और बदलाव की कहानियों को सन्ग्रहीत करने में कार्यकर्ताओं के कौशल का विकास करने के उद्देश्य से की गई थी |

बारह ऐसी कहानियों को जीवित रहने (Survive), बढ़ने (Thrive) और बदलाव (Transformation) जैसे तीन विषयों के तहत बुना गया और इन कहानियों को व्यापक स्तर पर पहुंचाने हेतु 30 अक्टूबर को सोशल मीडिया पर साक्षात् प्रसारण के माध्यम से प्रस्तुत किया गया| कहानियों पर सुश्री अकाइ मिंज, डॉ. पवित्रा मोहन, डॉ. प्रणाली कोठेकर, डॉ. ऑड्री प्रोस्ट, सुश्री रत्नाबोली रे और श्री साहिल कुमार जैसे सार्वजनिक स्वास्थय और समाजशास्त्र के विशेषज्ञों द्वारा प्रकाश डाला गया | फोटो दक्षिण एशिया के संस्थापक श्री वसंत नायक और शाय टेलर ने इस पहल का समर्थन किया|

इसकी शुरुआत अगस्त 2020 में स्टिल, वन्य जीवन, और मोबाइल फोन का उपयोग कर फोटोग्राफी व विडिओग्राफी के तकनीकों पर विशेषज्ञों द्वारा प्रसिक्षण के साथ हुई और एडिटिंग व संग्रहण के तकनीकों पर प्रशिक्षण के साथ इसका समापन हुआ | सम्पूर्ण सत्रों में प्रतिभागियों ने न केवल प्रभावी कहानी कहने के पहलुओं को समझा बल्कि फोटोग्राफी के माध्यम से मानवीय पहलुओं को सामने लाने के लिए विचारोत्तेजक चर्चाओं के साथ – साथ तस्वीरें लेना भी सीखा | विशेषज्ञों के महत्वपूर्ण व रचनात्मक सुझावों को शामिल कर असाइनमेंट को समय पर पूरा कर के प्रतिभागियों ने भावनाओं को कैमरे में कैद करना सीखा और अपनी कहानियों को नायक की आँखों के माध्यम से शब्दों में डाल दिया | इस रचनात्मक असाइनमेंट ने प्रतिभागियों को दूर – दराज के क्षेत्रों में रहने वाले उन परिवारों के साथ फिर से सम्बन्ध स्थापित करने की चुनौती दी जिनकी कहानी वो सुनाना चाहते थे |

जीवित रहने (Survive) की कहानियाँ

मध्यप्रदेश से जोगरी बाई और राजस्थान से मंजू की कहानी- बच्चों के जन्म जैसे महत्वपूर्ण समय में परिवार के सदस्यों और फ्रंटलाइन स्वस्थ्य कार्यकर्ताओं की भागीदारी और सहयोग के महत्व को प्रदीप, अनुष्का और मलय के द्वारा संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया गया | परोबिता ने झारखण्ड में रहने वाली ‘हो’ आदिवासी समुदाय की रीना की कहानी सुनाई जिसने समय पर संक्रमण की पहचान कर अपने बच्चे की जान बचाई |

चाहे वह मनपति और सरोज जैसी आशाओं की प्रेरक कहानियां हों जो अपने जीवन के संघर्षों पर काबू पाने के साथ समुदाय में बदलाव लाने के लिए अथक परिश्रम करती हैं या अनगिनत माताएं जिन्होंने अपने नवजात शिशुओं के जीवन को बचाया है – उनके ये कार्य सराहनीय है|

जब उनके बारे में सुनना उत्साहजनक था, वहीँ निर्मला द्वारा बताई झींगी की जिंदगी, पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला कुपोषण, कई पीढ़ी से चलती आ रही गरीबी के साथ जारी रहने वाले संघर्ष के बारे में बहुत कुछ बताती है, जो भारत के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालती है|

दर्शकों में एक पैगी कोनिज बूहर – जॉन स्नो इंटरनेशनल; ने कहा, “आशा की कहानियाँ ! हम सभी को इस दुनिया में मानवीय भावना और रेजिलिएंस की एक छोटी सी उम्मीद की जरुरत है| आपके द्वारा किये जा रहे काम के लिए धन्यवाद |”

बढ़ने (Thrive) की कहानियाँ

एक बच्चे का पालन करने में पुरे समुदाय की भागीदारी होती है| आशीष ने किसान मुंडा की कहानी साझा की जो बहुत कम उम्र में अनाथ हो गया था | वह कुपोषित और कमजोर था जब उसे क्रेश (6 महीने से 3 साल तक के बच्चों के लिए बाल देखरेख केंद्र) में लाया गया जहाँ अच्छी देखभाल मिलने से उसकी स्थिति में सुधार आई|

“हो” समुदाय की एक क्रेश कार्यकर्ता, सुकुरमुनी दीदी को पता था कि बच्चे खिलौनों से खेलना कितना पसंद करते करते है, इसलिए जब लौकडाउन के दौरान क्रेश बंद था, उन्होंने खिलौना बनाना और बच्चों को देना जारी रखा जिससे उन्हें बहुत ख़ुशी मिलती है| यह कहानी झारखण्ड से देबय के द्वारा प्रस्तुत की गयी थी|

क्रेश बंद होने के बाद बच्चों के घरों में सम्मानजनक तरीके से सूखे राशन को बिना किसी बाधा के पहुंचाए जाने की कहानी जो शिबानंद के द्वारा प्रस्तुत किया गया, अनुकरनीय है| यह आशंका है कि इस महामारी के दौरान दुनिया भर में लाखों बच्चे कुपोषण की श्रेणी में जा सकते हैं|

पर्यावरण और विकास के लिए नेतृत्व कर रही सुश्री विद्या नायर ने कहा, “जो अदृश्य हैं उन्हें फोटो यात्रा के माध्यम से दिखाया गया……|

बदलाव (Transformation) की कहानियां

कोविड 19 महामारी ने विकलांग, बुजुर्ग और बेघर लोगों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है | स्कूलों के बंद होने और कारोबार पर असर पड़ने से युवाओं को बहुत बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा | सुभश्री बात करती है रानी के बारे में जिसका बचपन अत्यधिक कठिन परिस्थितियों में गुजरा था और अभी एक युवा सहजकर्ता हैं | ऐसी परिस्थिति में वह सभी युवाओं के साथ खड़ी रही और उनका सहयोग किया |

बिनीत ने जनवरी की कहानी साझा की जिसने सभी कठिनाइयों को पार करते हुये राज्य स्तरीय टायक्वोंडो चैम्पियनशिप में जीत हासिल किया | राजकुमार ने झारखण्ड से संजू, काजल और नेहा की कहानी बताई जिन्होंने बाल विवाह का विरोध कर समाज की धारनाओं को चुनौती दी |

इस प्रकार कहानियों का सिलसिला आगे बढ़ता रहा और हमने विशेष रूप से पिछड़े आदिवासी समूह के “अधिकार साथियों ” जो अपने अधिकारों की मांग के लिए आवाज उठाने में असमर्थ लोगों की आवाज बन जागरूकता के अंतर को कम करने का कार्य करते हैं, के बारे में प्रत्युष और आसुतोष से सुना |

सुमित्रा की कहानी ने मानसिक रूप से बीमार आदिवासी महिलओं की दुर्दशा का विस्तार किया जिसमें बताया गया कि कैसे एक संवेदनशील रूप से डिज़ाइन किये गए समुदाय आधारित उपचार और टेली- साइकेट्री, चिकित्सा, परामर्श, राहत सहायता और सहायता समूह की बैठकों के माध्यम से स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का रास्ता तय किया जा सकता हैं |

‘अजय’ ने एक कहानी प्रस्तुत किया जिसमे ग्रामीण लोगों के शहरी इलाकों में बेघर होने और उनके जीवन में आत्महत्या करने की कोशिशों के हालात के बारे में बताया गया |

सुश्री किर्तिदा आजो जो विकास के क्षेत्र में कार्यरत हैं उन्होंने कहा, “दूर -दराज की कहानियों को प्रस्तुत करने का एक रोचक तरीका – चुनौतिपूर्ण वातावरण में कार्य करने वाले सभी लोगों को अधिक शक्ति!”

गरीबों और हाशिये पर रहने वाले लोगों की ये मार्मिक और बदलाव की कहानियां जो जमीनी स्तर के विकास कार्यकर्ताओं द्वारा गढ़ी गई है, महामारी की स्थिति को बहादुरी से मात देती दिखाई पड़ती है और ये कहानियां विकास और फ़ोटोग्राफी के छात्रों के लिए मूल्यवान संसाधन के रूप काम आएंगी | सभी प्रतिभागी अब एक अलग लेंस से दुनिया को देख पा रहे हैं |


एकजुट विकास के क्षेत्र में कार्य कर रही एक संस्था है जो झारखण्ड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के जीवित रहने, बढ़ने, परिवर्तन और रेजीलीएंस के विषयों पर लगभग दो दशकों से सामुदायिक स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में काम कर रही है | जबकि बच्चो के जीवन बचाने, पोषण और आजीविका सुरक्षित करने के संदर्भ में संस्था के कार्यों का मूल्याकंन किया गया है और उन्हें उच्च स्तरीय प्रभावकारी चिकित्सकीय पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया है, संख्याओं के पीछे की कहानियों, फ्रंट लाइन कार्यकर्ताओं के प्रयासों, संघर्षों और छोटी-छोटी समन्वय की अनकही कहानियों को सुनाने और अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने की आवश्यकता है |

Writers

Dr. Parabita Basu

Ms. Swati Roy

Dr. Nirmala Nair

Ms. Priyanka Yadav

Ms. Anushka

Mr Vikas Kumar